हरकनामा : भंडारे में गया था, अंदर गया तो हलवा खत्म और बाहर आया तो चप्पल गायब!
वक्त की हर शै गुलाम
- पुत्रवधू के टिकट के लिए दबाव बनाने पर हरक को भाजपा से होना पड़ा था विदा
- बड़ी मुश्किल से कांग्रेस में हुई एंट्री, पर लैंसडौन सीट से चुनाव हारी अनुकृति गुसाईं
देहरादून। ‘आदमी को चाहिये, वक्त से डरकर रहे, कौन जाने वक्त का कब बदले मिजाज’, यह गाना सभी पर चरितार्थ होता है, लेकिन मौजूदा हालात में यह बात कांग्रेस और भाजपा के कद्दावर नेता रहे हरक सिंह रावत पर लागू होती दिख रही है। अपनी पुत्रवधू और अन्य के टिकट के लिए दबाव बनाने पर हरक को भाजपा ने बाहर का रास्ता दिखा दिया था।
इसके बाद हरक इस मुगालते में थे कि कांग्रेस उन्हें सिर आंखों पर बैठा लेगी और वह अपनी शर्तों पर कांग्रेस में जाएंगे, लेकिन हकीकत एकदम उल्टा साबित हुई। इसके बाद हरीश रावत की जिद के चलते बड़ी मुश्किलों के बाद उनकी कांग्रेस में पार्टी की ही शर्तों पर एंट्री हो पाई थी और हरक को तो टिकट नहीं मिला, लेकिन उनकी पुत्रवधू अनुकृति को लैंसडौन सीट से टिकट मिल गया था।
अब अनुकृति गुसाईं को भी चुनाव में हार का सामना पड़ा है। भाजपा के दिलीप सिंह रावत ने करीब नौ हजार वोटों से उन्हें हराया है। अनुकृति गुसाईं के मैदान में होने से सबकी निगाहें इस सीट पर लगी थी। अब न तो अनुकृति जीत पाई और न ही हरक के लिये अगला सियासी सफर इतना आसान रहेगा, जितना वो सोचे हुए थे। हालांकि हरक पर बहू को जीत दिलाने के साथ-साथ कांग्रेस को बहुमत दिलाने का दायित्व भी था, जिसमें वो फ्लॉप साबित हुए हैं। उधर अनुकृति के टिकट की घोषणा के साथ ही कांग्रेस में भी उनका विरोध शुरू हो गया था। स्थानीय कांग्रेसियों ने अनुकृति को टिकट देने के विरोध में लैंसडौन से लेकर देहरादून तक कांग्रेस प्रदेश कार्यालय तक में प्रदर्शन किया था। वो स्थानीय नेता को ही टिकट देने की मांग कर रहे थे। अब देखना यह है कि हरक का अगला कदम क्या होगा!