उत्तराखंडी फिल्म : दिगंबर प्रोडक्शन की गढ़वाली फिल्म ‘थोकदार’ 8 जुलाई को होगी रिलीज

 उत्तराखंडी फिल्म : दिगंबर प्रोडक्शन की गढ़वाली फिल्म ‘थोकदार’ 8 जुलाई को होगी रिलीज
  • 8 जुलाई को दिगंबर प्रोडक्शन की गढ़वाली फिल्म ‘थोकदार’ हो रही है रिलीज। युवा उद्यमी ममता रावत ने किया है फिल्म का निर्माण

उत्तराखंड: रीजनल सिनेमा की अपनी ऑडियंस, अपना दायरा होता है। वह कॉमर्शियल से ज्यादा सोशल होता है। दक्षिण भारतीय सिनेमा को अपवाद के तौर पर देखा जा सकता है। वहां नेक्स्ट जनरेशन सिनेमा पर काम हो रहा है। उनका कैनवास हॉलीवुड स्तर का हो चला है। पंजाबी सिनेमा भी पिछले दो दशक में काफी बड़ा हुआ है। भोजपुरी सिनेमा को स्तरीय तो नहीं कहा जा सकता लेकिन वहां कई अच्छी फिल्में भी बनी हैं। उनके स्टार्स को पैन इंडिया लोग जानते हैं। भोजपुरी फिल्मों की अपनी एक अलग ऑडियंस और बाजार है।

लेकिन रीजनल सिनेमा में उत्तराखंड की मौजूदगी नहीं दिखती। एक समय था जब गढ़वाली और कुमाऊंनी भाषा की कुछ अच्छी फिल्में आईं। यहां तक कि लता मंगेशकर, सुरेश वाडेकर, उदित नारायण जैसे कलाकारों ने उत्तराखंडी फिल्मों के लिए गीत गाए। लेकिन फिर उत्तराखंडी सिनेमा सिमटता चला गया। इसके बाद एक लंबा दौर बिना फिल्मों के ही बीत गया।

पिछले दो साल में एक बार फिर उत्तराखंड में फिल्म निर्माण को लेकर लोग आगे आए हैं। हालांकि लंबे गैप के कारण हमारा सिनेमा काफी पीछे रह गया है। सिनेमा पर ये बात इसलिए क्योंकि अभी हाल में एक गढ़वाली फिल्म ‘थोकदार’ के ट्रेलर लांच पर जाने का मौका मिला। यह फिल्म दिगंबर प्रोडक्शन ने बनाई है और इसकी निर्माता युवा उद्यमी ममता रावत हैं। निश्चित तौर पर उनका यह प्रयास काबिलेतारीफ है। उनका कहना है कि फिल्म कितनी चलेगी इसकी चिंता किए बगैर वो कुछ और फिल्में बनाना चाहेंगी, क्योंकि उत्तराखंडी फिल्म इंडस्ट्री में भी संभावना है।

इस कार्यक्रम में लोक गायक गढ़रत्न नरेंद्र सिंह नेगी जी ने एक अच्छी बात कही। उनका कहना था कि हमें आंचलिक फिल्मों विशेषकर उत्तराखंड में बनने वाली फिल्मों को समीक्षक के तौर पर नहीं एक दर्शक के ही तौर पर देखना चाहिए। उत्तराखंड में बड़ी मेहनत और संसाधन जुटाने के बाद कोई निर्माता फिल्म बनाने का साहस करता है। ऐसे में उसका उत्साहवर्धन किए जाने की जरूरत है। यह अपनी लोक संस्कृति के प्रति हमारी जिम्मेदारी है कि हम उस फिल्म को देखकर उन्हें प्रोत्साहित करें, जिससे वो और फिल्में बनाएं। लगातार फिल्में आएंगी तो समय के साथ उनमें निखार खुद ब खुद होता चला जाएगा।

नेगी जी की ये बात बिल्कुल सही है। उत्तराखंड में अस्सी के दशक में फिल्म बनाने की शुरुआत हो गई थी लेकिन इतने साल बाद भी ये आंकड़ा सौ तक नहीं पहुंचा है। इसका एक बड़ा कारण अपनी ही फिल्मों को लेकर हम एक दर्शक के तौर पर उदासीन हैं। कोशिश ये होनी चाहिए कि हम इन फिल्मों को देखें। थियेटर में आडियंस को देखकर दूसरे लोग भी फिल्म बनाने पर विचार करेंगे। जितना हमारा सिनेमा आगे जाएगा, उतना ही फिल्मकारों में प्रयोग करने का साहस आएगा।
अभी सिर्फ 8 जुलाई को रिलीज हो रही गढ़वाली फिल्म ‘थोकदार’ का इंतजार।

Khabri Bhula

Related post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *