पहाड़ की नियति : जान हथेली पर और पांव टूटे पुल पर, कभी भी हो सकती है कोई अनहोनी
उत्तरकाशी। सदियां बीत गई, लेकिन जिला मुख्यालय के निकट स्यूंणा गांववासियों के आने जाने के लिए आज तक पुल निर्माण नहीं हो पाया है। जिसके कारण ग्रामीणों को मजबूरन भागीरथी नदी पर खुद पत्थर, बल्लियों और लकड़ियों की मदद से अस्थायी पुल बनाना पड़ रहा है।
सभी ग्रामीण भागीरथी पर बने अस्थाई पुल पर जान जोखिम में डालकर आवागमन कर रहे हैं। जिला मुख्यालय से मात्र चार किमी दूरी पर स्थित स्यूंणा गांव के लिए सड़क और पुल की सुविधा नहीं है। गांव को जोड़ने वाला पैदल मार्ग भी बदहाल है। ऐसे में ग्रामीण अस्थायी पुल के सहारे भागीरथी की उफनती धारा को पार कर अपने गांव पहुंचते हैं। बरसात में यहां के हालात और भी बदतर हो जाते हैं और भागीरथी का जलस्तर बढ़ने से अस्थायी पुल बह जाता है। इसके बाद ग्रामीणों का संपर्क कट जाता है।
शीतकाल में नदी का जलस्तर कम होते ही ग्रामीण हर बार की तरह फिर से अस्थायी पुल का निर्माण करते हैं। जिसके जरिए ग्रामीण सड़क मार्ग तक पहुंचते हैं। इस बार भी स्यूंणा गांव के ग्रामीणों ने एक बार फिर लकड़ी, बल्लियों और पत्थरों के सहारे भागीरथी नदी के ऊपर आवाजाही के लिए अस्थायी पुल बनाया है। जिस पर फिर से जानलेवा सफर शुरू हो गया हैं। ग्रामीणों की नियति का यह सिलसिला वर्षों से चल रहा है। बार बार आश्वासन मिलने के बावजूद सरकार, नेताओं के साथ ही शासन-प्रशासन ने आज तक उनकी सुध नहीं ली है।
ग्रामीणों ने बताया कि उन्होंने गांव के लिए गंगोरी से पुल निर्माण की मांग की थी। इस पर जिला प्रशासन ने इलेक्ट्रॉनिक ट्रॉली का वादा किया था, लेकिन वहां हस्तचालित ट्रॉली दे दी गई। जिसकी लोहे की रस्सी खींचने के कारण कई ग्रामीणों की अंगुलियां कट गईं। इस ट्रॉली पर बुजुर्ग, बच्चे और महिलाएं अकेले नहीं जा सकते हैं। जिसके कारण वे अस्थायी पुल पर जान हथेली पर रखकर सड़क तक पहुंचने के लिए मजबूर हैं।