अब क्या करेंगे उत्तराखंड के ये तीन दिग्गज रावत, हवन करेंगे…!
सियासत के घोड़े’ हो गये पैदल
- लंबे समय तक हनक के साथ तीनों ने सियासत में जमाया था सिक्का
- हरदा के साथ ही कभी सुपर सीएम रहे रणजीत भी हारे, विधायक भी न रहे हरक
देहरादून। उत्तराखंड में कभी सत्ता की धुरी रहे तीन दिग्गज रावत इस वक्त जिस हाल में हैं, उससे सवाल उठ रहा है कि क्या ये तीनों ही ‘सियासी नेपथ्य’ पर चले गए हैं। अहम बात यह भी है कि तीनों ही इस समय कांग्रेस में हैं और वक्त के फेर में फंसे तीनों रावत ही सियासी तौर पर ‘पैदल’ हो गये हैं। दूसरी ओर अगले पांच साल तक इन्हें हिस्से में कुछ खास आता भी नहीं दिख रहा है। यहां हम बात कर रहे हैं हरीश रावत, हरक सिंह रावत और रणजीत रावत की।
पहले बात करते हैं हरदा पर : कभी सांसद और केंद्रीय मंत्री रहने के साथ ही उत्तराखंड के सीएम रहे हरीश रावत 2017 के बाद अब 2022 में भी चुनाव हार गए हैं। चुनाव से पहले खुद के ही सीएम पद की लाबिंग करने वाले हरीश रावत विधायक भी नहीं बन सके। अब अगले पांच साल तक बन भी नहीं पाएंगे। इनके पास महज एक मौका 2024 में लोकसभा चुनाव लड़ने भर का बचा है।
अब मिलिये रणजीत रावत से : हरीश रावत के सीएम रहते ‘सुपर सीएम’ का दर्जा रखने वाले रणजीत रावत भी पहले 2012, 2017 में और अब 2022 में भी चुनाव हार चुके हैं। गुरु (हरदा) और चेले (रणजीत) के बीच 2017 के बाद से गहरे मतभेद हो चुके हैं। हरदा ने उन्हें पटखनी देने की कोशिश की तो रणजीत ने भी उन्हीं के अंदाज में जवाब दिया। इस चुनाव में रणजीत ने रामनगर सीट से चुनाव की तैयारी की थी, लेकिन वहां से हरदा ने खुद टिकट ले लिया। मामला हाईकमान तक गया और दोनों की सीट बदल दी गईं। नतीजा यह रहा कि दोनों ही दिग्गज चुनाव मैदान में खेत रहे।
तीसरे धुरंधर रावत हैं हरक : डॉ. हरक सिंह रावत राज्य गठन के बाद से सत्ता पर काबिज रहे हैं। उन्होंने कांग्रेस और भाजपा दोनों की सरकारों में सत्ता का खूब सुख भोगा है। अपनी हनक और चोली दामन के साथ की तर्ज पर विवादों से उनका गहरा नाता रहा है। उनके बारे में कहा जाता था कि वह जहां से भी चुनाव लड़ेंगे, हर हाल में जीत जाते हैं। इस बार वह समय की चाल पहचानने में गच्चा खा गए। भाजपा में प्रेशर पॉलिटिक्स के चक्कर में पहले तो मंत्री पद गया और पार्टी से भी निकाल दिए गए। इसके बाद सीन बदल गया और बड़ी मुश्किल से कांग्रेस में एंट्री हुई तो केवल पुत्रवधू के लिए टिकट पा सके। खुद तो विधायक बन न सके और न पुत्रवधू को बनवा सके। अब इन्हें भी पांच साल का इंतजार करना होगा। अगर कांग्रेस किसी तरह उन्हें गढ़वाल लोकसभा से टिकट देती भी है तो भी दो साल खाली ही रहने वाले हैं। हालांकि गढ़वाल लोकसभा से टिकट के दावेदारों में कई दिग्गज कांग्रेसी नेता भी हैं और उन पर दलबदलू होने का ठप्पा भी नहीं लगा है। इससे हरक के सामने पनघट की डगर कठिन ही रहने के आसार हैं।