उत्तराखंड : इंडस्ट्री के नाम पर ली जमीनों पर 20 सालों से चल रहा मुनाफे का खेल
देहरादून। राज्य गठन के बाद अब तक इंडस्ट्री लगाने, निवेश व अन्य उद्देश्यों के लिए दी गई सरकारी जमीन पर लोगों ने प्लॉट काट डाले और जिम्मेदार अफसर सोते रहे। करीब 20 सालों से चल रहे इस खेल का सच सामने आया तो भू कानून के अध्ययन और परीक्षण के लिए गठित उच्च स्तरीय समिति के पांव तले जमीन खिसक गई।
सूत्रों के मुताबिक कई जिलों से मिली रिपोर्ट में यह तथ्य सामने आया है कि कुछ मामलों में जमीन जिस मकसद के लिए आवंटित कराई गई, उस पर मुनाफा कमाने के लिए कुछ और ही बना दिया गया। इंडस्ट्री लगाने के नाम पर ली गई भूमि पर प्लाटिंग तक कर दी गई। यह खुलासा भू कानून के अध्ययन और परीक्षण के लिए गठित उच्च स्तरीय समिति के जिलों से मांगे गए ब्योरे से हुआ है।
करीब पांच बैठक करने के बाद समिति ने वर्ष 2003-04 के बाद राज्य में विभिन्न उद्देश्यों के नाम पर मुफ्त, रियायती दरों व अन्य सर्किल दरों पर आवंटित भूमि के उपयोग के संबंध में सभी जिलाधिकारियों से रिपोर्ट मांगी थी। समिति यह पता लगाना चाहती थी कि निवेश और सामाजिक कार्यों के नाम पर आवंटित भूमि की वर्तमान स्थिति क्या है? क्या उस पर निवेश हुआ? जिस उद्देश्य से भूमि ली गई, क्या उसे पूरा किया गया? इंडस्ट्री लगी तो कितने लोगों को रोजगार दिया गया? कितने भूखंड हैं, जहां अब तक कुछ नहीं हुआ? ऐसे तमाम पहलुओं पर जिलाधिकारियों से सूचना मांगी गई थी।
समिति के अध्यक्ष पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार के मुताबिक सभी जिलों से रिपोर्ट प्राप्त हो गई है। हालांकि अभी रिपोर्ट का गहराई से अध्ययन होना बाकी है, लेकिन जो तथ्य सामने आए हैं उनके मुताबिक 2007 में ली गई भूमि जिस उद्देश्य से दी गई, उस पर वह नहीं हुआ। कुछ मामलों में भूमि इंडस्ट्री के लिए ली गई, लेकिन उस पर प्लाटिंग कर दी गई। समिति यह भी दिखेगी कि किन कारणों से भूमि का सही उपयोग नहीं हो पाया। यह भी देखा जाएगा कि ये कारण कितने व्यावहारिक और उचित हैं।
पिछले कई वर्षों से सरकार से सस्ती दरों पर भूमि लेकर उसका दुरुपयोग करने की शिकायतें और सवाल उठते रहे हैं। पूर्व कांग्रेस सरकार में तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने भी आवंटित भूमि को लेकर श्वेत पत्र जारी करने की मांग उठाई थी। भू कानून का मसला उठने के बाद इस मांग ने दोबारा से जोर पकड़ा है।
समिति भू कानून के अध्ययन और समीक्षा को लेकर अब तक करीब पांच बैठकें कर चुकी है। समिति ने लोगों से भी सुझाव मांगे थे।
अब तक समिति के पास 200 से अधिक सुझाव पहुंच चुके हैं, जिनका अध्ययन हो चुका है। अब जिलों से भूमि की रिपोर्ट प्राप्त होने के बाद समिति की मई के पहले हफ्ते में बैठक होगी। इस बैठक के बाद समिति मई के अंतिम सप्ताह तक अपनी सिफारिशें तय कर देगी। इस अवधि में या जून के पहले हफ्ते में समिति सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपेगी। अब देखना यह है कि इतने बड़े घोटाले में शामिल जिम्मेदार अफसरों के खिलाफ जीरो टॉलरेंस का दावा करने वाली भाजपा सरकार क्या एक्शन लेगी?