कोरोना ने सुधारी हिमालय की सेहत!
हिमालय दिवस पर विशेष
- पर्यटकों की सीमित आवाजाही से वन्यजीवों का बढ़ा है परिवार, विलुप्ती के कगार पर पहुंचे कस्तूरी मृग दिखने लगे
- पुराने स्वरूप की ओर लौटने लगा हिमालय, कई विलुप्त प्रजातियों के खिलने लगे फूल
देहरादून। आज हिमालय दिवस है। यानी हिमालय के संरक्षण का दिन। मंच पर तो हम बड़ी-बड़ी बातें कर लेते हैं। लेकिन, हिमालय के हरे मैदानों और चोटियों को हमने मनोरंजन का साधन बना लिया है। सदा धवल रहने वाली इन चोटियों को पिकनिक स्पाॅट, मनोरंजन का साधन बनाकर नंगे घोड़े की पीठ की तरह भूरा बना दिया है। हिमालय की तलहटी में सुंदर बुग्यालों को एक तरह से कूड़ा-कचरा फैंककर ट्रैजिंग ग्राउंड बना दिया है। हर साल लाखों की संख्या में हिमालय के बुग्यालों की ओर घूमने जाते हैं और प्रदूषित करके आते हैं। जिसका खमियाजा हमें बेमौसम बारिश और वाटर लेबल की कमी से भुगतना पड़ रहा है। लेकिन हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि जब-जब हमने हिमालय के सीने पर कदम टेका है। उसके कुछ सालों पर हिमालय ने हमारे सिर पर पैर रखकर बदला लिया है। केदारनाथ जैसी भंयकर आपदा इसका उदाहरण हैं।
आइये, मिलकर हिमालयी क्षेत्र को साफ-सुथरा रखें, जल संरक्षण करें तथा जैव विविधता को बनाये रखें। जन सहभागिता से ही हिमालय संरक्षण संभव है। इंसानी गतिविधियां कम होने से हिमालयी क्षेत्र पुराने स्वरूप में लौटने लगे हैं। जो वन्य जीव और फूल कम दिखते थे वह निचले क्षेत्रों में भी आसानी से नजर आ रहे हैं। हिमालयी क्षेत्रों में कस्तूरी मृग, थार, घुरड़ सहित अन्य जीवों की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है। जबकि कस्तूरी कमल और फेन कमल जो बहुत कम दिखते थे वह भी जगह-जगह खिले हुए हैं।
कोरोना महामारी ने भले ही दुनिया में इंसानों पर कोहराम मचा दिया हो। लेकिन हिमालय की सेहत काफी हद तक सुधार दी है। पिछले दो साल में पर्यटन गतिविधियां सीमित होने पर उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पाए जाने वाले वन्य जीवों से लेकर कई तरह की वनस्पति और फूल खिले दिख रहे हैं। रुद्रनाथ ट्रेक पर कस्तूरी मृग देखे जा रहे हैं, जबकि इस क्षेत्र में वर्षों से इस मृग को नहीं देखा गया था। घुरड़ की संख्या में भी इजाफा हुआ है। चोपता में थार और राज्य पक्षी मोनाल की संख्या भी अधिक आंकी गई है। फूलों की घाटी और हेमकुंड साहिब सहित अन्य उच्च हिमालयी क्षेत्रों में ब्रह्मकमल के साथ कस्तूरी कमल और फेन कमल भी काफी संख्या में दिख रहे हैं।
वन विभाग के विशेषज्ञों के अनुसार हिमालयी क्षेत्रों में मानवीय हस्तक्षेप बढ़ने से वन्य जीव प्रभावित होते हैं। शांत वातावरण मिलने पर जहां वह आसानी से विचरण करते रहते हैं। दो वर्षों में मानवीय गतिविधियां कम होने से वन्य जीवों का परिवार बढ़ रहा है। केदारनाथ वन्यजीव प्रभाग के डीएफओ अमित कुंवर के अनुसार पिछले वर्षों के मुकाबले इस बार कस्तूरी मृग, थार, घुरड़ और मोनाल अधिक दिख रहे हैं। मानवीय हस्तक्षेप कम होने पर वन्य जीवों में प्रजनन क्षमता बढ़ जाती है। उच्च हिमालयी क्षेत्रों में बहुत कम दिखने वाले कस्तूरी कमल और फेन फ्लावर भी हेमकुंड साहिब और फूलों की घाटी में खिले हुए हैं।
पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि हिमालय भारतीय सभ्यता और संस्कृति का आधार है। यह हमारा भविष्य और विरासत दोनों ही है। हिमालय अपनी नदियों और जलवायु से पूरे विश्व को एक सूत्र में पिरोता है। मानव सभ्यता के लिए हिमालय का संरक्षण बहुत जरूरी है। हिमालय का संरक्षण का तात्पर्य यहां के पहाड़, ग्लेशियर, नदियों, तालाबों, झीलों, जलस्त्रोतों, वनस्पति, वन्य जीवों का संरक्षण है।
उन्होंने कहा कि आज का दिन हिमालय दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन हिमालय के सरोकारों को चिन्हित करने और फिर उसके मुताबिक अपनी जीवन शैली में बदलाव कर हिमालय संरक्षण का संकल्प लेने का दिन है। आइये, मिलकर हिमालयी क्षेत्र को साफ-सुथरा रखें, जल संरक्षण करें तथा जैव विविधता को बनाये रखें। जन सहभागिता से ही हिमालय संरक्षण संभव है।