उत्तराखंड : बदजुबानी और ध्रुवीकरण के लिये याद रखा जाएगा यह चुनाव

 उत्तराखंड : बदजुबानी और ध्रुवीकरण के लिये याद रखा जाएगा यह चुनाव

देहरादून। इस बार पांचवीं विधानसभा के लिए हुआ चुनावी रण कई मायनों में याद रखा जाएगा। नेताओं ने खूब बदजुबानी की तो एक-दूसरे को प्रचार युद्ध में पछाड़ने के लिए ध्रुवीकरण के तीर छोड़े। चुनाव से ऐन पहले धर्मनगरी हरिद्वार से धर्म संसद के विवादों का जिन्न भी बोतल से बाहर निकला। जिससे 10 मार्च को यह साफ होगा कि किस पार्टी का तीर निशाने पर लगा और किसका नहीं।
चुनाव प्रचार जब निर्णायक दौर में पहुंचा तो भाजपा ने तुष्टिकरण के मुद्दे पर कांग्रेस को असहज करने की कोशिश की। कांग्रेस ने तीन-तीन मुख्यमंत्री बदलने को लेकर बनाए गए तीन तिगाड़ा काम बिगाड़ा मुद्दे से भाजपा को घेरने का प्रयास किया। कांग्रेस रणनीतिक तरीके से धार्मिक ध्रुवीकरण के मुद्दे से कन्नी काटती नजर आई। ऐसे कई और मुद्दे रहे जिनकी वजह से 2022 के चुनाव याद रखा जाएगा।
भाजपा ने आखिर में चला ध्रुवीकरण का दांव : इस बार राजनीतिक दलों का प्रचार में भी आक्रामकता नजर आई। वर्चुअल रैलियां फिजिकल सभाओं में बदली और सियासी नेताओं की जुबान से नारों, मुद्दों और बयानों के तीर छूटने लगे। भाजपा ने आखिर में ध्रुवीकरण का दांव चला। मुस्लिम विवि के मुद्दे पर मोदी, योगी, शाह से लेकर पार्टी का शायद ही कोई केंद्रीय और प्रांतीय नेता रहा जिसने कांग्रेस को असहज करने की कोशिश नहीं की। लव जिहाद से लेकर लैंड जिहाद, हिजाब और आखिर में सीएम धामी का समान नागरिक संहिता का मुद्दा ध्रुवीकरण की सियासत का आखिरी दांव माना गया।
कांग्रेस ने ‘तीन तिगाड़ा’ को बनाया हथियार : कांग्रेस रणनीतिक तरीके से इस मुद्दे से कन्नी काटती दिखी। पार्टी के चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष हरीश रावत का बयान आया कि वह भाजपा की पिच पर नहीं खेलेंगे बल्कि बेरोजगारी, महंगाई और अर्थव्यवस्था से जुड़े चुनावी मुद्दों की बात करेंगे। तीन-तीन मुख्यमंत्री बदलने के मुद्दे को कांग्रेस ने अपने चुनाव अभियान का सबसे धारदार हथियार बनाया। पार्टी ने तीन तिगाड़ा काम बिगाड़ा नारे और गाने से भाजपा को असहज करने की कोशिश की।
थीम सांग्स भी रहेंगे याद : यह विधानसभा चुनाव सियासी दलों और प्रत्याशियों के बनाए गए थीम सांग्स के लिए भी याद किया जाएगा। भाजपा, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी ने ही थीम सांग्स नहीं बनाए बल्कि प्रत्याशियों के समर्थन में भी सोशल मीडिया और प्रचार में जमकर गाने बजाए गए। मखमली आवाज के जादूगर जुबिन नौटियाल ने भी पार्टी के थीम सांग गाया और प्रधानमंत्री की कविता को आवाज दी।
दलबदलुओं की रही बल्ले बल्ले : इस बार का चुनाव दलबदल के लिए भी याद रखा जाएगा। धामी सरकार के कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य व हरक सिंह रावत कांग्रेस में चले गए। दोनों ही दलों में दलबदलुओं की बहार आ गई। सरिता आर्य और दुर्गेश्वर लाल, किशोर उपाध्याय इधर भाजपा में आए उधर पार्टी ने उन्हें प्रत्याशी बना दिया। उसी अंदाज में ओम गोपाल रावत और टिहरी विधायक धन सिंह नेगी ने भाजपा से बगावत की और कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ गए।
खूब हुई बदजुबानी : चुनाव में जमकर बदजुबानी भी हुई। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के बारे में ‘धोबी का … घर का न घाट का’ टिप्पणी की, जिस पर हरीश ने कड़ा एतराज जताया। राहुल गांधी पर असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा की टिप्पणी को कांग्रेस बदजुबानी करार दिया। मतदान से ठीक पहले सोशल मीडिया पर वीडियो और ऑडियो के तीर चले।
पहली बार हरक नहीं लड़ पाये चुनाव : उत्तराखंड के चुनावी इतिहास में यह पहला चुनाव है जिसमें चर्चित नेता हरक सिंह रावत नजर नहीं आए। भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल होने के बाद उन्हें चौबट्टाखाल से सतपाल महाराज के खिलाफ उतारे जाने की चर्चाएं भी हुईं। लेकिन कांग्रेस ने उन्हें उम्मीदवार नहीं बनाया। हरक केवल लैंसडौन विस सीट पर अपनी पुत्रवधू का चुनाव लड़ाने तक सीमित रहे।
चैंपियन और कर्णवाल भी हुए पैदल : अपने विवादित बयानों को लेकर चर्चाओं में रहने वाले विधायक कुंवर प्रणव सिंह चैंपियन और देशराज कर्णवाल भी इस बार चुनाव नहीं लड़ पाए। एक-दूसरे के खिलाफ बयानबाजी के कारण पार्टी को असहज करने वाले इन दोनों विधायकों का भाजपा ने टिकट काटते हुए पैदल कर दिया।

Khabri Bhula

Related post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *