केदारनाथ क्षेत्र में निर्माण को लेकर वैज्ञानिकों ने सरकार को चेताया
देहरादून। केदारनाथ क्षेत्र में लगातार हो रहे निर्माण कार्यों को खतरे की घंटी बताते हुए वैज्ञानिकों की टीम ने निर्माण कार्य तुरंत रोकने की सिफारिश है। इससे सरकार से लेकर शासन तक में हड़कंप मचा है, लेकिन इन निर्माण कार्यों को पर्यटन की दृष्टि से सरकार अपनी उपलब्धि बता रही है।
वैज्ञानिकों के केदारनाथ धाम क्षेत्र में निर्माण कार्यों को लेकर सरकार को आगाह करने का यह कोई नया मामला नहीं है। क्योंकि धाम में 2013 की जल प्रलय के बाद वैज्ञानिकों की टीम ने अध्ययन के बाद जो रिपोर्ट दी थी, उसमें भी किसी भी बड़े निर्माण न करने की सिफारिश की गई थी। इसके बावजूद केदारनाथ क्षेत्र में ऐसे कई निर्माण किए गए जो इस इलाके में प्राकृतिक रूप से खतरे को निमंत्रण देने वाले हैं।भले ही केदारनाथ में निर्माण को लेकर वैज्ञानिकों ने अध्ययन के बाद निर्माण कार्य रोके जाने की सिफारिश हाल ही में की हो, लेकिन वैज्ञानिकों के केदारनाथ में खतरे को लेकर यह कोई पहली रिपोर्ट नहीं है।
इससे पहले वाडिया इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने केदारनाथ क्षेत्र में साल 2013 की आपदा के बाद किए गए अध्ययन में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी, जिसमें इस क्षेत्र में किसी भी बड़े निर्माण को ना करने को लेकर आगाह किया गया था। लेकिन हैरानी की बात यह है कि इस अहम रिपोर्ट की चेतावनी के बावजूद केदारनाथ क्षेत्र में कई बड़े निर्माण किए गए और अब एक बार फिर वैज्ञानिकों को अपनी रिपोर्ट में इन कामों को रोकने के लिए सिफारिश करनी पड़ रही है।
वाडिया इंस्टीट्यूट के वरिष्ठ वैज्ञानिक रहे डीपी डोभाल बताते हैं कि उन्होंने इस पूरे क्षेत्र का अध्ययन आपदा के बाद किया था और इस दौरान उन्होंने पहले ही यह बात साफ कर दी थी कि इस इलाके में कई एक्टिव एवलांच होने के चलते एक बड़ा खतरा यहां बना हुआ है। रिपोर्ट में इस क्षेत्र में किसी भी बड़े निर्माण को नहीं किए जाने की भी सिफारिश की गई थी। हैरानी की बात यह है कि हाल में हिमस्खलन की लगातार कई घटनाओं से भी सरकारी तंत्र की आंखें नहीं खुल सकी हैं।
वैज्ञानिकों की इस रिपोर्ट को भी नजरअंदाज करते हुए यहां पर निर्माण किए गए और अब इस खतरे से जुड़ी रिपोर्ट को लेकर सरकार में हड़कंप मचा हुआ है। इस क्षेत्र में निर्माण कार्य के चलते वायुमंडल में फैली धूल के कण भी खतरे को बढ़ा रहे हैं। वैज्ञानिक बताते हैं कि वैसे तो बर्फबारी क्षेत्र में कम हुई है और इस कारण एक्टिव अवलॉन्च ग्लेशियर के ऊपरी क्षेत्रों में आ रहे हैं, लेकिन यदि बर्फबारी ज्यादा होती तो यह एवलांच मंदिर के पीछे तक भी आ सकते थे।
वह बताते हैं कि बर्फबारी कम हो रही है और वायुमंडल में धूल के कण फैलने के कारण जो बर्फ गिर रही है, वह तेजी से पिघल रही है। इसकी वजह यह है कि बर्फ के साथ यह धूल के कण मिक्स हो रहे हैं जिसके कारण सूर्य की किरणें यह बर्फ सोख रही हैं। इससे बर्फ तेजी से पिघल रही है। उनके अनुसार सबसे बड़ा खतरा यह है कि केदारनाथ जिस क्षेत्र में है, उसके आगे समतल क्षेत्र सीमित है और इसके आगे पूरा इलाका एक ढलान के रूप में है। ऐसी स्थिति में इस सीमित समतल क्षेत्र पर निर्माण का इस तरह का दबाव ज्यादा करना इतना बड़ा खतरा बन सकता है जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है।