यूकेएसएसएससी : अभी खुले घूम रहे ‘मगरमच्छ’!

 यूकेएसएसएससी : अभी खुले घूम रहे ‘मगरमच्छ’!

सिस्टम पर सवाल

  • सुप्रीम कोर्ट ने आयोग अध्यक्ष राजू पर की हैं तल्ख टिप्पणियां
  • यहां कोई एक्शन की बजाय बना दिया आयोग अध्यक्ष
  • उसके बाद लगातार दिया जा रहा है अध्यक्ष को एक्सटेंशन
  • अब तक की आयोग की अधिकांश भर्तियों रही हैं विवाद में

देहरादून। उत्तराखंड एसटीएफ ने अधीनस्थ सेवा चयन आयोग यूकेएसएसएससी की भर्ती में बड़ी गड़बड़ी का खुलासा किया है। यह अलग बात है कि एसटीएफ अभी तक मगरमच्छ को शिकंजे में नहीं ले सकी है। हालांकि माना जा रहा है कि एसटीएफ जल्द ही बड़े मगरमच्छों को भी गिरफ्त में ले लेगी।
इन हालात के बीच आयोग की विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। खास तौर आयोग अध्यक्ष एस. राजू की नियुक्ति और फिर लगातार एक्सटेंशन सोशल मीडिया में छाया हुआ है। एसटीएफ द्वारा राज्य अधीनस्थ सेवा चयन आयोग द्वारा भर्ती परीक्षा में खुलासे के बाद आयोग की विश्वसनीयता पर तमाम सवालात खड़े हो रहे हैं।
सबसे बड़ा सवाल आयोग अध्यक्ष एस. राजू का है। इस पूर्व आईएएस अफसर की कार्यशैली पर सुप्रीम कोर्ट ने न केवल तल्ख टिप्पणियां की थी, बल्कि जुर्माना भी लगाया था। 2013 में राजू प्रमुख सचिव पेयजल थे। एक मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने राजू पर तल्ख टिप्पणियां की। अदालत ने कहा था कि उनकी विश्वसनीयता, नेतृत्व क्षमता, निर्णय लेने की क्षमताएं, विषय का तकनीकी ज्ञान संदेह के घेरे में है। शीर्ष अदालत ने उन पर 50 हजार का जुर्माना लगाया था।
सुप्रीम कोर्ट की राजू पर तल्ख टिप्पणियों पर उत्तराखंड सरकार ने कोई कार्रवाई करने के बजाय प्रमुख सचिव राजू को राज्य अधीनस्थ सेवा चयन आयोग का अध्यक्ष बना दिया गया। इतना ही नहीं, उन्हें लगातार सेवा विस्तार दिया जाता रहा है। लगभग पांच साल के अधिक के उनके अध्यक्ष के कार्यकाल में कई भर्ती परीक्षाओं में गड़बड़ियां सामने आई, लेकिन हुजूर अभी भी पद पर बने हुए हैं।
इसके साथ ही शासन और नौकरशाही का उनके प्रति रवैया कुछ नरम ही बना हुआ है। जबकि उनकी नाक के नीचे उनके ही कार्यालय का एक होमगार्ड, कोचिंग इंस्टीट्यूट का संचालक, आउटसोर्स कंपनी का कर्मचारी प्रश्न पत्र लीक कर लाखों रुपये के वारे न्यारे कर और लगभग 1,60,000 युवाओं के भविष्य के साथ मजाक कर अब सलाखों के पीछे हैं।
यहां अहम बात यह भी है कि आयोग ने भर्ती परीक्षा कराने वाली निजी कंपनी को अब तक ब्लैक लिस्ट नहीं किया। एक्शन के नाम पर कहा गया कि कंपनी से गोपनीय काम वापस ले लिया गया। सवाल यह है कि इस निजी कंपनी के प्रति आयोग का इतना मोह क्यों है। कई भर्ती परीक्षाओं में यह कंपनी युवाओं के भविष्य से खिलवाड़ कर चुकी है, लेकिन आयोग के अफसर इस कंपनी पर अब तक उसी तरह से मेहरबान बने हुए हैं, जिस तरह से प्रदेश सरकार आयोग अध्यक्ष और सचिव पर बनी नजर आ रही है। अब देखना यह है कि आयोग की मिलीभगत से प्रदेश के युवाओं के भविष्य से कब तक खिलवाड़ किया जाता रहेगा। 

Khabri Bhula

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